सरगोशियाँ
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बच-बचाकर उसे घर लाया गया। ना उनसे किसी ने पूछा ना उन्होंने किसी को बताया। कुछ दिन बाद सब सामान्य हो गया था। वह अब अपनी बहन के साथ पैखाने जाती है।
सीन -2
सालों बाद आज जब पछुवा हवाओं से तपता चाँद बादलों की चादर ओढ़ रहा था, उस दम गांव से दूर वीरान सी एक खेत में दोबारा नंगा किया जा रहा था उसे और उसकी बहन को। उनके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया। दोनों के हाथ पांव मजबूती से बाँध दिए गए। और रात भर रौंदा गया उन्हें जब तक वो निढाल हो जमीन पर ना गिर पड़ी । घरवाले एक बार फिर परेशान हो उठे थे। स्मृतियों पर अचानक खौफ़ हावी हो गया। आनन फानन में निकल पड़े बाग़ की ओर। वो दोनों वहां पर भी नहीं थी। माँ पछाड़े मारकर रोने लगी। बाबूजी रह-रहकर बेहोश हो जाते। रात भर खोज जारी रही। सुबह दोनों की लाश मिली, पेड़ पर टंगी।
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