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“रउवा कुछ पजटिव वजटिव लिखल करीं। गाभिन गाय (दुधारू गाय) अउर वाम्पन्थियन की तरह काहें बौरायल रहत हो”
(कुछ पॉजिटिव लिखा कीजिये। वामपंथी विचारकों की तरह क्यूँ नकारात्मक लिखते रहते हैं)
मैं जब भी शब्दों की खोज में निकलता हूं, तुम्हारी शिकायती सदाएं हमेशा मेरा पीछा करतीं हैं।सच कहूं तुमसे तो मैं बेहद रोमांटिक हूं। मैं अक्सर खामोश ठहरे लम्हों से “रदीफ़” चुनता हूं, मेलहती लहरों से कुछ काफिया छीन लेता हूं, गुलज़ार गुलिश्तां से गुलाबी हर्फ़ चुराता हूं और फिर पूरी शिद्दत से कोशिश करता हूं कि रोमांटिक लफ़्ज़ों से तारी ग़ज़ल लिख उतार दूं सफहों के सीने में। लेकिन जब दुधमुंहे बच्चों को सिग्नलों पर हाथ पसारे देखता हूं, गज भर छाती वाले पढ़े-लिखे बेरोजगारों को सड़कों पर धूल फांकते देखता हूं, हिजाबी और बे-हिजाबी चेहरों को परम्पराओं और सामाजिक दोगलेपन की आग में जलता देखता हूं, फकत एक रोटी के लिए मानवीय भेड़ियों से अपने जिस्म नुचवाती किसी औरत को देखता हूं, तो कलेजा मुंह को आ जाता है और शब्द चित्कार उठते हैं। ऐसे में तुम्ही कहो कैसे लिखूं मीठे अल्फाजों से भीगी नज़्म ……तुम तो जानती हो मीठे अल्फाज़ दिल बहला सकते हैं, भूखे पेट नहीं।
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